hindisamay head


अ+ अ-

कविता

अभागा

हरे प्रकाश उपाध्याय


उसके ईश्वर ने उसे कुछ नहीं दिया
सिवाय एक चटाई
एक ओढ़ना
और एक मोमबत्ती के

हालाँकि चटाई के बावजूद
वह थका रहता है
ओढ़ने के बावजूद
सिहरता रहता है, काँपता रहता है

और मोमबत्ती के बावजूद
उसे कुछ दिखाई नहीं देता
वह अँधेरे में जीता है
ठीक मोमबत्ती की जड़ में

रोशनी में
धरती का वैभव फूल बनकर खिलता है
जिस पर भौंरे बनकर मँडराते हैं
श्रीमान आप
उसकी चटाई पर
बनियों की दुकानें हैं
और पुजारियों के जूते

उसके ओढ़ने पर
खटमलों और कीटों का कब्जा है
और मोमबत्ती की रोशनी
बदचलन है
जो उसके लिये सिकुड़ जाती है
बाकी सबके लिए फैल जाती है

हालाँकि वह ईश्वर से कोई शिकायत नहीं करता

हरदम अपने को कोसता है
हरदम अपना ही माथा ठोकता है
वह मंदिर के बाहर बैठकर सोचता है
भीतर ईश्वर
फूलों और मिठाइयों से दबा
घंटियों की ताल में अपना सुर मिलाकर रोता है!

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में हरे प्रकाश उपाध्याय की रचनाएँ